और सांई बाबा लौट गए... (लघु कथा)
>> Wednesday, July 28, 2010
गुरूपूर्णिमा का दिन, मुहल्ले के सांई बाबा मंदिर में भंड़ारा का आयोजन । मंदिर बनवाने वाली महिला ही मुख्य आयोजक, उनके आदेशानुसार भंडारा चालू था । एक- दो घंटे तक मुहल्ले की भीड़ के साथ-साथ आसपास के झुग्गी-झोपड़ी के गरीब लोग भी एकत्रित थे, दोनों वर्गों के लिए अलग-अलग लाईन और व्यवस्था देख रहे लोगों का इन दोनों लाईन के लोगों के लिए अलग-अलग व्यवहार ।
मुहल्ले के लोगों को जब प्लेट मिल जाती तब जाकर गरीबों का नंबर आता था। अचानक मंदिर मालकिन आकर बोली ‘बस अब भंडारा खत्म ’, उसकी बेटी पास आकर बोली ‘मम्मी अभी तो काफी रखा है’। मम्मी ने उसे किनारे कर कहा ‘मेरे आॅफिस का पूरा स्टाफ आने वाला है’।
सारे गरीब मायूस होकर लौट रहे थे । किसी ने नहीं देखा ‘बाबा ’आए और लौट भी गए पर खाली हाथ ।
19 comments:
अजय जी आजकल लोगों के पास वो नजरें नहीं जो होनी चाहिए
यही होता है..ज्यादातर भंडारा में...अच्छी लघु कथा
सब दिखावा है...इस कलयुग में
केवल पैसे की चका चौंद ही रह गई है
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बडी़ विडम्बना है...
सच के करीब ..विचारणीय ,,,ऐसा ही होता है...?
bahut sach ke kareeb rachna
जबकि बाबा का संदेश है कि नर सेवा ही नारायण सेवा है....
ha ha ha
stof pahuncha ki nahi?
बहुत अच्छी मार की लघुकथा के माध्यम से अजय जी..
आज का सच दिखा दिया……………॥बहुत खूब्।
आज का सच कह दिया।
yatharthvadi smaj ka sach
सच्चाई को आपने बखूबी शब्दों में पिरोया है! उम्दा प्रस्तुती!
... bhaavapoorn laghukathaa !!!
अच्छा नहीं लगा यह सब जानकर ।
मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!
Aapkee ye laghukatha tathakathit dharmatma logo kee maansikta darsha gayee . laxmee jee ka janha aasheervaad hai bus unhee ka bolbaala hai samaj me .Ye ek katu saty hai .
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