नया किराएदार (लघु कथा)
>> Wednesday, July 14, 2010
वैसे तो हमने सोचा था कि प्राईवेट जॉब वाले को मकान नहीं देंगे...पर आप भले आदमी लगते हैं...चलिए ठीक है, हम तैयार हैं, तो कब आ रहे हैं सामान लेकर.? मकान मालिक ने कहा..मकान मालकिन हैरान थीं कि पतिदेव तो ठान चुके थे कि सरकारी कर्मचारी को ही किराए पर देंगे, फिर अब क्या हुआ..? न तीन महीने का एडवांस मांगा, न कोई किराए के अनुबंध की बात की, उसे क्या पता था कि नए किराएदार की टूरिंग जॉब और उसकी दो जवान खूबसूरत बेटियों को देखकर मकान मालिक ने ये फैसला लिया था ।
11 comments:
यह लघुकथा नहीं बल्कि आज के समाज की वास्तविकता है!
अच्छी लघु कथा...
कमी नहीं है...कमीनों की
बड़ी विडम्बना है...
इस पोस्ट को तो टाप पर होना चाहिए था.
लीजिए अभी टाप पर पहुंचाता हूं.
बहुत ही करारा व्यंग्य मारा है आपने.
इसी तरह लिखते रहे..
लघुकथा के क्षेत्र में जल्द से जल्द बनाए अपना मुकाम
यूं तो लघु कथा लिखने का बड़ा शौक है..पर पहली बार अपने ब्लाग में पोस्ट के रूप में लिखी ..अब लिखता रहुंगा...शायद धीरे-धीरे थोड़ा बेहतर लिख सकुं....सभी साथयों का आभार..
becharee patnee............ apane pati kee soch se anbhigy.......
bahut badhiya
gre8
धन्य हैं आप । धन्य-धन्य हुआ ऐसी अतिरोचक-कलियुगी कथा सुनकर ।
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