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तथाकथित भगवानों की कलई खुली, कृष्ण -तुलसी पर टिप्पणी से मचा बवाल

>> Wednesday, March 2, 2011

‘सबकी वास्तविकता’ के बैनर-पोस्टर जलते साधू।Add caption

पत्रिका के विवादित अंश
पत्रिका का विवादित अंश
छत्तीसगढ़ के राजिम में अर्ध कुंभ मेले के आयोजन में मंगलवार 1 मार्च को साधु-संतों का आक्रोश फूट पड़ा। हरिद्वार से प्राकाशित पत्रिका ‘सबकी वास्तविकता’ में भगवान कृष्ण और गोस्वामी तुलसीदास पर की गई प्रतिकूल टिप्पणी से नाराज साधुओं ने पत्रिका बेचने वाले दो साधुओं की जमकर पिटाई की। इसके बाद उनकी कुटिया में जमकर तोडफ़ोड़ की और बैनर-पोस्टर जला दिए। घटना से आसपास अफरातफरी मच गई। इसकी सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस ने बीचबचाव किया। पुलिस ने पत्रिका बेचने वाले दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया है।

मेले में संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानंद जी परमहंस के शिष्यों ने पंडाल लगा रखा है। आज सुबह उनके दो शिष्य पंडाल में ‘सबकी वास्तविकता’ नामक पत्रिका बांट रहे थे। इस दौरान कुछ साधु-संतों ने पत्रिका पढ़ी। इसमें भगवान कृष्ण और तुलसीदास पर प्रतिकूल टिप्पणी लिखी थी। इस पढ़कर वे आक्रोशित हो गए और पत्रिका बेचने वालों पर टूट पड़े। इसके बाद कुटिया में रखे प्रचार सामग्री को जला दिया। मौके पर पहुंची पुलिस ने किताब बेचने वालों को गिरफ्तार कर लिया। विवादित अंश

पत्रिका ‘सबकी वास्तविकता’ वर्ष 18, अंक·-06 नवंबर 2011 के पेज नंबर 29 में तुलसी दास के बारे में लिखा है तो ऐसा व्यसनी, एक ऐसा भोगी, कितना भोगी, तुलसिया, कितना व्यसनी तुलसिया, रत्नावली व्यसन को छोड़कर, भोग को छोड़कर संत हो जाए यह छोटी उपलब्धि है क्या? बहुत बड़ी चीज है। ऐसा व्यसनी तुलसिया, जो स्त्री के लिए बरसात नहीं समझा, नदी का बाढ़ नहीं समझा, मुर्दा को मुर्दा न हीं समझा, काठ समझकर के पार कर के और ससुराल गया। सांप को सांप नहीं समझ पाया, रस्सी समझकर आंगन में उतरा। यदि उनकी बात सही समझी जाए, मान ली जाए तो ऐसा व्यसनी कि एक रात स्त्री के बगैर दो-चार रात न हीं रह सकता था।
इसी तरह ‘सबकी वास्तविकता’ वर्ष 18, अं·-07 दिसंबर 2010 के पेज नंबर 37 में भगवान कृष्ण के बारे में लिखा है कि एक चीर हरण, जबकि द्रौपदी नंगी भी नहीं हुई थी, महाभारत करा दिया। कितने चीर-हरण किए कृष्णजी ने गोपियों का, सब नंगी भी हुई थीं। सब ऊपर हाथ जोड़ी थीं। परिणाम क्या हुआ? कुछ नहीं हुआ। लीलामय था। द्रौपदी वाले मामले में सब शारीरिक लोग थे। वहां स्त्री-पुरुष का भेद था। और यहां जो चीर-हरण हुआ कृष्णजी और गोपियों के बीच में, इनको शरीर भाव से ऊपर ले जाने के भाव से था। भगवद् भाव में ले जाने के लिए था। इसलिए यहां उसकी कोई निंदा-शिकायत नहीं आया।







 








1 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा March 2, 2011 at 11:54 AM  

वर्तमान में जिसे देखो वही टीकाकार हो गया। जबकि इनकी शैक्षणिक योग्यता न्यून है। इन्होने कहीं से भी शास्त्रों की परम्परागत शिक्षा भी प्राप्त नहीं की। जो मर्जी चाहे लिखे जा रहे हैं और प्रकाशित किए जा रहे हैं। इस पर रोक लगनी चाहिए।

जानकारी देने के लिए आभार

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