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असहाय यशवंत और यूपी का लोकतंत्र

>> Tuesday, October 19, 2010

: क्या पत्रकार का असहाय होना जुर्म है? : आज ना जाने क्यों अपने पत्रकार और ईमानदार होने पर पहली बार शर्म आ रही है। आज दिल चाह रहा है कि अपने सीनियर्स जिन्होंने हमको ईमानदार रहने के लिए शिक्षा दी उन पर मुकदमा कर दूं। साथ ही ये भी दिल चाह रहा है कि नई जनरेशन को बोल दूं कि ख़बर हो या ना हो, मगर ख़ुद को मजबूत करो।
कम से कम इतना मज़बूत तो कर ही लो कि अगर तु्म्हारी बेगुनाह माता जी को ही पुलिस किसी निजी द्वेश की वजह से ब्लैकमेल करते हुए थाने में बिठा ले तो मजबूर ना होना। थानेदार से लेकर सीओ, एसएसपी, डीआईजी, आईजी, डीजी समेत सूबे की मुखिया तक को उसकी औक़ात के हिसाब से ख़रीदते चले जाना। मगर मां के एक आंसू को भी थाने में मत गिरने देना। ये मैं इसलिए नहीं कह रहा कि तुम्हारी बेबसी से तुम्हारा अपमान हो जाएगा। बल्कि अगर अपमान की वजह से किसी बदनसीब की बेगुनाह की मां की आंख का एक क़तरा भी थाने में गिर गया तो यक़ीन मानना उस एक कतरे के सैलाब में कोई भी व्यवस्था बह जाएगी।
आज मेरे एक दोस्त की, बल्कि मेरी ही माता जी के उत्तर प्रदेश पुलिस के हाथों होने वाले अपमान की ख़बर मिली। ना जाने क्यों ऐसा लगा कि किसी ने मेरे पूरे बदन से कपड़े ही नोंच लिए हों । उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर की इस घटना के बारे में मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि भले ही हर पत्रकार का अपना एक दायरा हो। उसकी जान पहचान बहुत लम्बी हो। उसके एक फोन पर लोग छोड़े और पक़डे जाते हों। मगर जिसकी मैं बात कर रहा हूं उसको देश का कोई ऐसा पत्रकार नहीं जो ना जानता हो। कई बड़े अखबारों में रह कर आज वो एक ऐसी संस्था चला रहा है जिसने देश की पत्रकारिता को एक नए अध्याय से जोडा है। सबसे ख़ास बात ये कि आज अगर भारत के पत्रकारों का कोई एक मंच है, तो वो उसका जनक है।
मैं निसंकोच बात कर रहा हूं यशवंत की। यानि मैं भ़ड़ास4मीडिया के सर्वेसर्वा की बात कर रहा हूं। अक्सर कई पत्रकार साथियों के साथ हुए मामलों पर यशवंत की बेबाकी और उसकी जुर्रत ने ये साबित किया कि कोई आवाज़ तो है जो पत्रकारों की बात करती है। मगर अफसोस उत्तर प्रदेश में उसी यशवंत की माता और पूरे परिवार को बंधक बना लिया गया। पुलिस के हाथो बंधक बनाये जाने के पीछे तर्क ये था कि तुम्हारे परिवार के कुछ लोगों ने गम्भीर अपराध किया है। उनको ले आओ और परिजनों को ले जाओ। तकरीबन 12 घंटे तक एक बेटा जो रोजी रोटी की तलाश मे देश की राजधानी में आया था, सैंकड़ों मील दूर थाने में बैठे अपने परिवार और माता जी को छुड़ाने के लिए अधिकारियों से लेकर अपने पत्रकार साथियों से गुहार लगाता रहा। आखिर वही हुआ। यानि आरोपी जब तक पुलिस के हत्थे नहीं लगे ये बेचारे वहां पर अपमान का घूंट पीते रहे।
ख़ास बात ये है कि एक दलित और महिला के राज में किसी बेबस महिला का पुलिस अपमान किस बूते पर कर सकती है। कौन सा क़ानून है जिसकी दम पर किसी दूसरे व्यक्ति के अपराध के लिए किसी दूसरे को बंधक बना कर ब्लैकमेल किया जा सके। पुलिस का तर्क था कि ऊपर से दबाव था। उत्तर प्रदेश प्रशासन के इस कारनामे को देख कर अनायास ही ख़्याल आया कि अगर कोई ये पूछे कि उत्तर प्रदेश भी भारत का ही हिस्सा है। तो आप या तो उसको पागल कहोगे या फिर सिर फिरा। लेकिन मुझे आपके इस पागल और सिरफिरे के सवाल में दम नज़र आ रहा है। उत्तर प्रदेश जहां के बारे में सिर्फ ख़बरे पढ़ कर ही नहीं बल्कि ख़ुद ख़बरें करके कई बार देखा है कि आजकल दिल्ली से चंद किलोमीटर दूर यहां की सीमाओं में घुसते ही ना जाने क्यों लगने लगता है कि कुछ बदला बदला सा है। कानून के रखवालों के नाम पर मानो खुद लुटेरों ने कमान सम्भाल ली हो। टूटी सड़के बता रही हैं कि ठेकेदार से लेकर अफसरों और बहन जी तक ठीक ठाक बंटवारा पहुचा दिया गया है। भले ही दलित भूख से मर जाएं मगर मूर्ति का साइज़ छोटा नहीं हो सकता।
इतना ही नहीं सूचना के अधिकार अधिनियम में भी कांट छांट की अगर किसी ने हिम्मत की है तो सिर्फ उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार ने। इतना ही नहीं मेरे पास मौजूद दर्जनों फाइलों में कैद दस्तावेज ये साबित करने के लिए काफी हैं कि यहां क़ानून तक का मज़ाक़ उड़ाना प्रशासन के बाएं हाथ का खेल है। यानि कुल मिला कर अगर कहा जाए कि जो क़ानून देस भर में या किसी भी अन्य प्रदेश मे पूरी तरह से प्रभावी है तो वो उत्तर प्रदेश में बेबस सा नज़र आता है। ऐसे में किसी कमज़ोर पत्रकार की माता जी और परिवार को पुलिस 12 घंटे तक मानसिक प्रताड़ना देती रहे तो कोई ताज्जुब नहीं।
लेकिन धन्य है वो माता जिसने अपने पत्रकार बेटे को एक ऐसी स्टोरी मुहय्या करा दी जिससे उत्तर प्रदेश के पूरे तंत्र को ही नहीं बल्कि उन तमाम लोगों को भी बेनक़ाब कर दिया है जो बात तो करते हैं जनता की मगर महज़ वोटों की हद तक। उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना करने वाले कांग्रेसियों को बुरा ना लगे तो एक बात कहूं। वो महज़ राजनीति में बीच वाले की हैसियत से सिर्फ हथेलियां बजा कर काम चलाना चाहते हैं। काग्रेस के रंग रूप को देखकर किन्नर और भी सम्मानित नज़र आने लगते हैं। जनता को बयानों से बहकाने वाली काग्रेस अगर सूबे की सत्ता में नहीं है तो क्या वो जनता को बेबस तड़पते देखने को ही राजनीति मानती है। या फिर राजनीतिक अवसर वाद के तहत किसी समझौते पर अमल किया जा रहा है।
उधर लोहिया के क़ाग़ज़ी शेर भी बहन जी के नाम से दुम दबा कर बैठे हैं। जनता की कमाई लुट रही है। और नेता जी को परिवार वाद से ही फुरसत नहीं। और केंद्र में विपक्ष के नाम पर राजनीतिक बुज़दिली का प्रतीक बन चुकी बीजेपी भले ही भगवानों के नाम पर बगले बजाती फिरे मगर आम जनता के हितों को लेकर शायद उसको किसी समझौता का आज भी इंतज़ार है। एक असहाय पत्रकार की माता जी का उत्तर प्रदेश पुलिस के हाथों अपमान भले ही टीआरपी के सौदागरों के लिए कोई बड़ी ख़बर ना हो मगर ये सवाल है उन लोगों से जो बाते तो करते हैं बड़ी बड़ी मगर उनकी सोच है बहुत ही छोटी। अगर आज इस सवाल पर बात ना की गई तो फिर मत कहना कि कोई पत्रकार किसी की लाश को महज़ इस डर से बेच रहा है कि पुलिस को देने के लिए पैसा ना हुए तो उसके साथ भी......!!!!!!!!!!!!!



लेखक आज़ाद ख़ालिद चैनल 1 में बतौर न्यूज़ हैड जुड़े रहे और इस चैनल को लांच कराया. डीडी, आंखों देखी से होते हुए तकरीबन 6 साल तक सहारा टीवी में रहे. एक साप्ताहिक क्राइम शो तफ्तीश को बतौर एंकर और प्रोड्यूसर प्रस्तुत किया. इंडिया टीवी, एस1, आज़ाद न्यूज़ के बाद वीओआई बतौर एसआईटी हेड काम किया. इन दिनों खुद का एक साप्ताहिक हिंदी अख़बार 'दि मैन इ अपोज़िशन' और न्यूज वेबसाइट oppositionnews.com चला रहे हैं.

सभी सम्मानीय ब्लॉगर साथियों को मेरा नमस्कार .

>> Thursday, October 7, 2010

सभी सम्मानीय ब्लॉगर साथियों को मेरा नमस्कार ..
 मै एक महीने से गायब ही हो गया था ..असल में मैंने हरिभूमि छोड़ कर पत्रिका ज्वाइन कर लिया है ...पत्रिका ने और मैंने एक नयी शुरुआत रायपुर से  की है ...बेहद व्यस्तता का आलम बना हुआ है ..इसलिए कोई पोस्ट बड़े दिनों से नहीं की ...अब जल्द ही नयी अच्छी पोस्ट करूँगा ...हां ...मेरे जन्मदिन की जो बधाइया  मुझे मिली जिसके लिए पाबला जी और ललित शर्मा जी , अवधिया जी का मै बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हू ..मुझे बड़ी ख़ुशी है इस  बात  की आप सब मुझसे बहुत ही स्नेह रखते है ..
   फिर जल्द ही....आपका अजय

वाह क्या हाजमा है ..! (कार्टून)

>> Monday, August 23, 2010

यहां तो 14 साल के बच्चे ही पीते-पिलाते दिखते हैं (कार्टून)

>> Monday, August 9, 2010

मुक्के से 1 मिनट में 111 नारियल फोड़कर बुलंद छत्तीसगढ़ का बुलंद आयोजन

>> Tuesday, August 3, 2010

किसी व्यक्ति या संस्था के लिए अपने कार्यों का आंकलन करना अत्यावश्यक हो जाता है क्योंकि इससे से भविष्य की योजनाएं बनती हैं, भविष्य का पथ प्रशस्त होता है। 1अगस्त को रायपुर में गॉस मेमोरियल सेंटर में बु्लंद छत्तीसगढ अखबार का द्वितीय वार्षिकोत्सव मनाया गया।
इस अवसर पर प्रेस के प्रतिनिधियों का भी सम्मेलन रखा गया था।

 इस अवसर पर श्री राजेन्द्र पांडे अधिवक्ता अलाहाबाद, डॉ अर्चना पांडे, श्री कौशल तिवारी, श्री ललित शर्मा, तपेश जैन,मनोज पांडे श्री अहफ़ाज रशीद, सुश्री संगीता गुप्ता, फ़िरोज खान,एवं प्रेस प्रति्निधि मौजुद थे।    इस अवसर पर अहफ़ाज रशीद, कौशल तिवारी, तपेश जैन,ललित शर्मा, राजेन्द्र पाण्डेय, डॉ अर्चना पान्डेय, संगीता गुप्ता ने अपने विचार प्रगट किए।
बुलंद छत्तीसगढ की तरफ़ से सभी अतिथियों का स्वागत किया गया तथा स्मृति चिन्ह दिया गया। इस अवसर पर पत्रकारिता विषय पर चर्चा हूई।  
  अंतिम में शाबास इंडिया फ़ेम प्रमोद यादव ने 111 नारियल एक मिनट में मुक्के से फ़ोड़ कर दिखाए। करतल ध्वनि से उनके कार्य को सराहा गया।   अंत में अहफ़ाज रशीद द्वारा निर्मित, हमर छत्तीसगढ एव नक्सली हिंसा के खिलाफ़ दो छोटी फ़िल्में दिखाई गयी। दोनो फ़िल्में बहुत प्रभावी हैं। 
 
कार्यक्रम का समापन कौशल तिवारी जी के आभार प्रदर्शन से हुआ। हम बुलंद छत्तीसगढ के बुलंद भविष्य की कामना करते है। 
 
 
अंत में m.verma जी के ब्लाग जज्बात से ली गई एक कविता कौशल भाई के लिए
कब तक
सहमीं रहेंगी
नदी के कगारों से
अजस्त्र धारायें
अवरोधों के उस पार
कहीं तो नवल क्षितिज होगा.
.अन्धेरे के तमाम त्रासदियों को
सहने के बाद
जब भी यह रात ढलेगी;
अंतस के प्राची से
जब भी नूतन भोर झांकेगा,
मैं जानता हूँ
सूरज का महज़ एक तपन
काफी है पिघला देने को
उन गहनतम दीवारों को भी
जो हमें अब तक
बौना बनाये रखे हैं
.सार्थक प्रयत्न
कभी भी निष्फल नही होता
उजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी
आखिर कब तक
गर्म हौसलों को
ठंडी बर्फ़ की परतें
छुपा सकती हैं भला
कब तक ........

और सांई बाबा लौट गए... (लघु कथा)

>> Wednesday, July 28, 2010

गुरूपूर्णिमा का दिन, मुहल्ले के सांई बाबा मंदिर में भंड़ारा का आयोजन । मंदिर बनवाने वाली महिला ही मुख्य आयोजक,  उनके आदेशानुसार भंडारा चालू था । एक- दो घंटे तक मुहल्ले की भीड़ के साथ-साथ आसपास के ­झुग्गी-­झोपड़ी के गरीब लोग भी एकत्रित थे, दोनों वर्गों के लिए अलग-अलग लाईन और व्यवस्था देख रहे लोगों का इन दोनों लाईन के लोगों के लिए अलग-अलग व्यवहार ।
  मुहल्ले के लोगों को जब प्लेट मिल जाती तब जाकर गरीबों का नंबर आता था। अचानक मंदिर मालकिन आकर बोली ‘बस अब भंडारा खत्म ’, उसकी बेटी पास आकर बोली ‘मम्मी अभी तो काफी रखा है’। मम्मी ने उसे किनारे कर कहा ‘मेरे आॅफिस का पूरा स्टाफ आने वाला है’।
 सारे गरीब मायूस होकर लौट रहे थे । किसी ने नहीं देखा ‘बाबा ’आए और लौट भी गए पर खाली हाथ ।

नया किराएदार (लघु कथा)

>> Wednesday, July 14, 2010

वैसे तो हमने सोचा था कि प्राईवेट जॉब वाले को मकान नहीं देंगे...पर आप भले आदमी लगते हैं...चलिए ठीक है, हम तैयार हैं, तो कब आ रहे हैं सामान लेकर.? मकान मालिक ने कहा..मकान मालकिन हैरान थीं कि पतिदेव तो ठान चुके थे कि सरकारी कर्मचारी को ही किराए पर देंगे, फिर अब क्या हुआ..? न तीन महीने का एडवांस मांगा, न कोई किराए के अनुबंध की बात की, उसे क्या पता था कि नए किराएदार की टूरिंग जॉब और उसकी दो जवान खूबसूरत बेटियों को देखकर मकान मालिक ने ये फैसला लिया था ।

क्या आप ‘कुछ नहीं लेंगे’....?

>> Tuesday, July 13, 2010

जब आपके घर कोई खास मेहमान आए और आपने उनसे पूछा ‘क्या लेंगें ?’ और मेहमान ने कहा कि ‘कुछ नहीं’ तो आप लगते हैं झुंझलाने कि आखिर कहां से लाउं ‘कुछ नहीं’ .... आखिरकार अब इस समस्या का भी हल मिल ही गया...आप खुद देख लीजिए...
 

अब आपका कोई दोस्त कहे कि ‘कुछ नहीं लेंगे’ तो सर्व करिए उनको ‘कुछ नहीं’   

पहचानें इन्हें ..ये हैं कौन ..?

>> Sunday, July 11, 2010


आप में से शायद कोई कहे ...अरे ये तो गुरूदत्त साहब हैं!!!

कोई कह सकता है कि आलोक नाथ हैं..
सज्जनों भले ही यह चित्र पुराने हैं, लेकिन इनका महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह एक ऐसे साहित्यकार का चित्र हैं जो लगातार सृजनरत हैं, यदि आप इन चित्रों को नहीं पहचान पा रहें हैं तो मैं थोड़ा और क्लू देता हूं। ये साहब बडे ब्लागर तो हैं ही साथ ही 32 किताबों के रचियता भी हैं, और उनकी 4-5 किताबें जल्द ही प्रकाशित होने वाली हैं ।

तीस साल से पत्रकारिता से जुड़े रहने के बाद इस सुर्दशन व्यक्तित्व के धनी साहब ने भारतीय एवं विश्व साहित्य की अनुवाद-पत्रिका का संपादन कर साहित्य की अनवरत् साधनारत् हैं, इस साधना का परिणाम है कि आज वे अपनी सुधि पाठकों के बीच खासे लोकप्रिय हैं। इनके प्रकाशित पुस्तकों में सात व्यंग्य संग्रह- ट्यूशन शरणम गच्छामि, भ्रष्टाचार विकास प्राधिकरण, ईमानदारों की तलाश, मंत्री को जुकाम, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ, नेता जी बाथरूम में और हिट होने के फार्मूले। तीन व्यंग्य उपन्यास- मिठलबरा की आत्मकथा, माफिया (दोनों पुरस्कृत), एवं पॉलीवुड की अप्सरा। नवसाक्षरों के लिए बारह पुस्तकें, बच्चों के लिए चार पुस्तकें। एक ग़ज़ल संग्रह, एक हास्य चालीसा। चार व्यंग्य संग्रहों में रचनाएँ संकलित हैं। कुछ रचनाओं का तमिल, उर्दू, कन्नड, अंग्रेजी, नेपाली, सिंधी, मराठी, पंजाबी, छत्तीसगढ़ी आदि में अनुवाद किया है।

व्यंग्य का बहुचर्चित अट्टाहास युवा सम्मान, माफिया के लिए लीलारानी स्मृति सम्मान, एवं मिठलबरा की आत्मकथा के लिए रत्नभारती सम्मान,तीस से ज़्यादा संस्थाओं द्वारा सम्मान-पुरस्कार पाने वाले हमारे ये भाईसाहब विदेश प्रवास में अमरीका, ब्रिटेन, त्रिनिडाड(वेस्टइंडीज) थाईलैंड, मारीशस, श्रीलंका, नेपाल, बहरीन, मस्कट, दुबई जा चुके हैं। अमरीका के लोकप्रिय रेडियो चैनल सलाम नमस्ते से उनका सीधा काव्य प्रसारण हो चुका है।

अब ज्यादा कुछ इनके बारे में लिखना सूरज को आईना दिखाने का काम है...बहरहाल मैं आपको बता दूं कि इक दिन आदरणिय के निवास गया था, वहां मैंने दीवार पर उनकी ये तस्वीरें देखी और फटाफट अपने मोबाइल में कैद किया। उनसे बिना पूछे तस्वीरे ली और आज अपने ब्लाग में पोस्ट के रूप में डाल भी रहा हूं। गौर से देखिए इन चित्रों को जिन मुद्राओं में ये तस्वीरें खिंचवाई गई हैं वह यह बताने के लिए काफी है कि होनहार बिरवान के होत हे चिकने पात....अब तो काफी लोग जान गए होंगे कि ये होनहार सज्जन कौन हैं....?

भरे सिलेण्डर पर चोर-उचक्के की नजर .!!! (कार्टून)

>> Tuesday, June 29, 2010

जितने नापसंद का चटके उतनी बीयर...!!! (कार्टून)

>> Thursday, June 17, 2010

पापा के ब्लाग में नापसंद के चटके....!!! (कार्टून)

>> Tuesday, June 15, 2010



आग के बीच सैक्स गुरू ..!!! (कार्टून)

>> Monday, June 14, 2010

पद की गरिमा घटी बढ़ा काम वासना रोग...!!! (कार्टून)

>> Wednesday, June 9, 2010

           हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौड़ का मामला
               अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ है कि प्रदेश के एक
                और पूर्व सीनियर पुलिस ऑफिसर के खिलाफ छेड़छाड़
        का मामले में केस दर्ज किया गया है। पूर्व आईजी
           एम . एस . अहलावट के खिलाफ कथित छेड़छाड़ का
यह मामला भी आठ साल पुराना है।



घर में निरूपमा राय और बाहर मल्लिका शेरावत ...?

>> Tuesday, June 8, 2010

 ऐसा क्यों है कि भीड़ में या 
सूनसान में  अकेली लड़की को पा कर
                  मर्दो  के अंदर का ‘रावण’ जाग ही जाता है.....  ???? 


वॉइस ब्लागिंग में फर्जी ब्लागर कांव-कांव नहीं कर पाएंगे (कार्टून)

>> Sunday, June 6, 2010

नोट- साथियों वॉइस ब्लागिंग 
में कमेंन्टस  करने वाले की आवाज
की पहचान तो की ही जा सकती है साथ ही
इस्तेमाल किए जाने वाले फोन नंबर की भी जानकारी
हो जाती है..ऐसे में ये फर्जी यहां पर अपनी टांग उठा
कर किसी के भी ब्लाग में गंदगी तो फैला 
ही नहीं सकते......बाकी कमीनों की तो
कमी नहीं है देश में.....


ब्लाग जगत के लिए भी हो सैंसर बोर्ड का गठन

>> Wednesday, June 2, 2010


गलती से कल देर रात राजकुमार सोनी जी का ब्लाग ‘बिगुल’ खोला और उत्सुकतावश और थोड़ा सा डरते-सहमते उनकी पोस्ट-’ खूनी महल के दरवाजे में प्यासा हैवान और चीखती लाश’ पढने लगा अचानक लाईट चली गई..फिर क्या था ..लगा कि कमरे में रामसे ब्रदर्स के सारे मरे,जले, कटे,गले भूतहा पात्र इकठ्ठा हो गए हैं..हनुमान जी को स्मरण करता हुआ बुदबुदाने लगा..‘भूत-पिशाच निकट नहीं आए महावीर जब नाम सुनावें.’...अपनी धर्मपत्नी को धीरे से आवाज लगाई पर वो तो मानो घोड़ो का पूरा अस्तबल बेच कर सो रही थीं ..मुझे तो वो भी रामसे अंकल की एक कैरेक्टर लगने लगी थी..स्साले मोहल्ले को आवारा कुत्तों को भी तभी अपनी प्रेमिकाओं के याद में जोर-जोर से रोना था..तभी लघुशंका महसूस हुई..आज तो बाथरूम का दरवाजा भी कर्रर्रर्रर्र करता हुआ मुझे डरा रहा था ..सोनी जी की लिस्ट वाली मोमबत्ती भी घर जाने कहां रखी थी..जैसे-तैसे पलंग तक पहूंचा और इतनी गर्मी में भी मुंह ढांक कर सो गया खैर दिन भर की थकान के कारण नींद तो आई पर सोनी जी की पोस्ट के सारे कमीने भूत एक कर के मेरे सपने में आए....किसी ने मुझे नोंचा, किसी ने काटा, कोई मेरा हाथ चबा गया, कोई मेरा पांव..कोई मेरा..... जब हडबडा कर जगा तो गला सूख चुका था ..सबसे पहले अपने शरीर को ठठोल कर देखा..गनीमत सब अपनी जगह पर सही सलामत था। क्या है कि पेशे से कलाकार होने के नाते जो कुछ भी पढ़ता-सुनता हूं दिमाग उसकी कल्पना भी साथ-साथ शुरू कर देता है..यूं तो मैं तीन-तीन जिंदा इंसानों में भारी हूं..और अंधश्रध्दा र्निमूलन समिति का सक्रिय सदस्य भी हूं..पर जब से ब्लाग जगत से जुड़ा हूं और भूतनाथ, भूतनी,चुडैल, जलजला जैसे लोग मेरे ब्लाग में प्रकट होने लगे हैं शैतानी शक्तियों की इस दुनिया में मौजूदगी का अहसास होने
लगा है।

मेरा निवेदन है सोनी जी जैसे महान स्क्रिप्ट राईटरों से -भईया कृपया इस टाईप की पोस्ट के उपर कमजोर दिल वाले इसे न पढ़े जरूर लिखा करें....अन्यथा ब्लाग जगत के लिए भी एक सैंसर बोर्ड का गठन बेहद जरूरी हो गया है। वरना किसी दिन कोई मेरे जैसे भले ब्लागर का ‘हमेशा’ के लिए भला हो जाएगा..।

अखवार मिशन से कमीशन हो गया

>> Monday, May 31, 2010

मनमोहन बांटेगे सब्जियों के स्वाद वाली पिपरमेंट...

>> Thursday, May 27, 2010

फर्जी ब्लागरों का पुतला दहन...!

>> Tuesday, May 25, 2010

जलजला जैसे फर्जी ब्लागरों को नक्सली समर्थन...!

>> Monday, May 24, 2010

ब्लागर सम्मेलन में पिटने के डर से भागे जलजला..!

>> Sunday, May 23, 2010

70 के दशक का लौटा फैशन ...

दागदार हुआ स्टार न्यूज

>> Wednesday, April 28, 2010

मोदी फ्रंट पेज में !!!

माया की मालदार माला ..

>> Thursday, March 18, 2010

बापू बेचारे ....

नित्यानंद अर्थात ....

>> Thursday, March 4, 2010

और कही रोज चलानी पड़े तो......

>> Monday, February 15, 2010

हमको कौन रोकेगा

>> Sunday, February 14, 2010

वेतन चाहे एक करोड़ कर दो ....

>> Tuesday, February 9, 2010

मच्छरों का स्वर्ग

>> Tuesday, January 26, 2010

दस का दम..!!!

>> Friday, January 1, 2010


आखिर प्रदेश का मामला है


खा-पी कर लौटा लाल


सन्डे होता तो ज्यादा टीक था..


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