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और सांई बाबा लौट गए... (लघु कथा)

>> Wednesday, July 28, 2010

गुरूपूर्णिमा का दिन, मुहल्ले के सांई बाबा मंदिर में भंड़ारा का आयोजन । मंदिर बनवाने वाली महिला ही मुख्य आयोजक,  उनके आदेशानुसार भंडारा चालू था । एक- दो घंटे तक मुहल्ले की भीड़ के साथ-साथ आसपास के ­झुग्गी-­झोपड़ी के गरीब लोग भी एकत्रित थे, दोनों वर्गों के लिए अलग-अलग लाईन और व्यवस्था देख रहे लोगों का इन दोनों लाईन के लोगों के लिए अलग-अलग व्यवहार ।
  मुहल्ले के लोगों को जब प्लेट मिल जाती तब जाकर गरीबों का नंबर आता था। अचानक मंदिर मालकिन आकर बोली ‘बस अब भंडारा खत्म ’, उसकी बेटी पास आकर बोली ‘मम्मी अभी तो काफी रखा है’। मम्मी ने उसे किनारे कर कहा ‘मेरे आॅफिस का पूरा स्टाफ आने वाला है’।
 सारे गरीब मायूस होकर लौट रहे थे । किसी ने नहीं देखा ‘बाबा ’आए और लौट भी गए पर खाली हाथ ।

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नया किराएदार (लघु कथा)

>> Wednesday, July 14, 2010

वैसे तो हमने सोचा था कि प्राईवेट जॉब वाले को मकान नहीं देंगे...पर आप भले आदमी लगते हैं...चलिए ठीक है, हम तैयार हैं, तो कब आ रहे हैं सामान लेकर.? मकान मालिक ने कहा..मकान मालकिन हैरान थीं कि पतिदेव तो ठान चुके थे कि सरकारी कर्मचारी को ही किराए पर देंगे, फिर अब क्या हुआ..? न तीन महीने का एडवांस मांगा, न कोई किराए के अनुबंध की बात की, उसे क्या पता था कि नए किराएदार की टूरिंग जॉब और उसकी दो जवान खूबसूरत बेटियों को देखकर मकान मालिक ने ये फैसला लिया था ।

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क्या आप ‘कुछ नहीं लेंगे’....?

>> Tuesday, July 13, 2010

जब आपके घर कोई खास मेहमान आए और आपने उनसे पूछा ‘क्या लेंगें ?’ और मेहमान ने कहा कि ‘कुछ नहीं’ तो आप लगते हैं झुंझलाने कि आखिर कहां से लाउं ‘कुछ नहीं’ .... आखिरकार अब इस समस्या का भी हल मिल ही गया...आप खुद देख लीजिए...
 

अब आपका कोई दोस्त कहे कि ‘कुछ नहीं लेंगे’ तो सर्व करिए उनको ‘कुछ नहीं’   

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पहचानें इन्हें ..ये हैं कौन ..?

>> Sunday, July 11, 2010


आप में से शायद कोई कहे ...अरे ये तो गुरूदत्त साहब हैं!!!

कोई कह सकता है कि आलोक नाथ हैं..
सज्जनों भले ही यह चित्र पुराने हैं, लेकिन इनका महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह एक ऐसे साहित्यकार का चित्र हैं जो लगातार सृजनरत हैं, यदि आप इन चित्रों को नहीं पहचान पा रहें हैं तो मैं थोड़ा और क्लू देता हूं। ये साहब बडे ब्लागर तो हैं ही साथ ही 32 किताबों के रचियता भी हैं, और उनकी 4-5 किताबें जल्द ही प्रकाशित होने वाली हैं ।

तीस साल से पत्रकारिता से जुड़े रहने के बाद इस सुर्दशन व्यक्तित्व के धनी साहब ने भारतीय एवं विश्व साहित्य की अनुवाद-पत्रिका का संपादन कर साहित्य की अनवरत् साधनारत् हैं, इस साधना का परिणाम है कि आज वे अपनी सुधि पाठकों के बीच खासे लोकप्रिय हैं। इनके प्रकाशित पुस्तकों में सात व्यंग्य संग्रह- ट्यूशन शरणम गच्छामि, भ्रष्टाचार विकास प्राधिकरण, ईमानदारों की तलाश, मंत्री को जुकाम, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ, नेता जी बाथरूम में और हिट होने के फार्मूले। तीन व्यंग्य उपन्यास- मिठलबरा की आत्मकथा, माफिया (दोनों पुरस्कृत), एवं पॉलीवुड की अप्सरा। नवसाक्षरों के लिए बारह पुस्तकें, बच्चों के लिए चार पुस्तकें। एक ग़ज़ल संग्रह, एक हास्य चालीसा। चार व्यंग्य संग्रहों में रचनाएँ संकलित हैं। कुछ रचनाओं का तमिल, उर्दू, कन्नड, अंग्रेजी, नेपाली, सिंधी, मराठी, पंजाबी, छत्तीसगढ़ी आदि में अनुवाद किया है।

व्यंग्य का बहुचर्चित अट्टाहास युवा सम्मान, माफिया के लिए लीलारानी स्मृति सम्मान, एवं मिठलबरा की आत्मकथा के लिए रत्नभारती सम्मान,तीस से ज़्यादा संस्थाओं द्वारा सम्मान-पुरस्कार पाने वाले हमारे ये भाईसाहब विदेश प्रवास में अमरीका, ब्रिटेन, त्रिनिडाड(वेस्टइंडीज) थाईलैंड, मारीशस, श्रीलंका, नेपाल, बहरीन, मस्कट, दुबई जा चुके हैं। अमरीका के लोकप्रिय रेडियो चैनल सलाम नमस्ते से उनका सीधा काव्य प्रसारण हो चुका है।

अब ज्यादा कुछ इनके बारे में लिखना सूरज को आईना दिखाने का काम है...बहरहाल मैं आपको बता दूं कि इक दिन आदरणिय के निवास गया था, वहां मैंने दीवार पर उनकी ये तस्वीरें देखी और फटाफट अपने मोबाइल में कैद किया। उनसे बिना पूछे तस्वीरे ली और आज अपने ब्लाग में पोस्ट के रूप में डाल भी रहा हूं। गौर से देखिए इन चित्रों को जिन मुद्राओं में ये तस्वीरें खिंचवाई गई हैं वह यह बताने के लिए काफी है कि होनहार बिरवान के होत हे चिकने पात....अब तो काफी लोग जान गए होंगे कि ये होनहार सज्जन कौन हैं....?

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